जाने-माने मनोश्चिकित्सक डॉ ‌निमिष देसाई  का मानना हैं कि कोविड के प्रहार के बाद  अब लोगों को एक और महामारी से निपटने की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए और वो  बीमारी है मानसिक अवसाद की. खास तौर पर कोविड के भीषण प्रहार और उस के बाद उस के दुष्प्रभावों का सभी  ्पर खास तौर पर महिलाओं  और काम काजी महिलाओं  पर ज्यादा हुआ. कोविड की वजह से जीवन में आयी अनिश्चितता और अस्थिरता के चलतें महिलायें मानसिक संत्रास ्को अभी तक  झेल रही हैं.  डॉ देसाई यहा आई डब्ल्यू पी सी (इंडियन विमेंस प्रेस कोर ) में  आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस ्में बोल रहे थे.विषय था महिलाओं, खास कर कामकाजी महिलाओं  पर पोस्ट कोविड का मानसिक रुप से कितना प्रभाव पड़ा है और अगर कोई डिप्रेशन में  है भी तो इसका निदान कैसे किया जाए.

डॉ देसाई का सुझाव था कि  महिलाओं को ऐसे हालात में खुद को और साथ में परिवार को भी संभालना है.ऐसे में सबसे पहले तो इसे हौव्वा ना बनाएं.देसाई का सुझाव था कि अगर एक दो हफ्ते लगातार लो फील हो तो डॉक्टर से सलाह लेकिन साथ ही ओवर ट्रीटमेंट से भी बचें.पारिवारिक  जीवन में भावानात्मक रिश्तों को और मजबूत बनाने में पूरी ईमानदारी से योगदान करें
उन्होंने कहा कि कोविड की तीनों लहरें शारीरिक आर्थिक परेशानियों के साथ ही मानसिक संत्रास ले कर आयी थी,  लोगों में तनाव,  चिंता बढी, आर्थिक अनिश्चिता बढी,
 ॅलोग बेरोजगार बढें, लोग बेघर हुये, बीमार होने पर  जरूरी चिकित्सा नही मिल सकीं.इस सब के  दुष्प्रभाव स्वरूप घरों मे घरेलू हिंसा ्बढी, बच्चों तक में तनाव बढा हुआ, स्कूल वे जा नही सकें, खेलने जा नही सकते थे. नतीजा सभी तरफ घोर निराशा अवसाद छा गया.
उन का मानना हैं कि भारत के मजबूत पारिवारिक ढॉचें की वजह से यह के लोग कोविड  के दुष्प्रभावों तक कुछ  हद तक तक  झेल  भी पायें. डिप्रेशन के विश्व व्यापी ऑकड़ों की बात करें तो एक तरफ दुनिया भर

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